Popular Posts

Sunday, March 20, 2022


 

भाषाई मानवविज्ञान का अर्थ और क्षेत्र

संस्कृति का अध्ययन, जो मानवविज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, भाषा के विभिन्न आयामों को समझे बिना अधूरा होगा, क्योंकि भाषा संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा है।

भाषाई मानवविज्ञान शब्द और इसके भिन्न मानवशास्त्रीय भाषाविज्ञान को वर्तमान में विभिन्न तरीकों से समझा जाता है। भाषाई मानवविज्ञान मानवविज्ञान की एक शाखा है जो मानव के जैविक और सांस्कृतिक पहलुओं के संबंध में भाषा के अध्ययन से संबंधित है। यह विशिष्ट संस्कृतियों के संबंध में भाषा की संरचना, उसके उपयोग, उत्पत्ति, विकास और वर्गीकरण की जांच करता है। भाषाई मानवविज्ञानी भाषा का अध्ययन सामाजिक जीवन के एक अभिन्न पहलू के रूप में करते हैं क्योंकि यह संचार और सामाजिक संपर्क का प्राथमिक माध्यम है जिसके बिना प्रमुख सामाजिक संस्थाएं (परिवार, कानून, राजनीति और अर्थव्यवस्था) किसी भी समाज में काम नहीं कर सकते। भाषा भी समाजीकरण का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।

भाषाई मानवविज्ञान और भाषाविज्ञान

            कार्यप्रणाली के संदर्भ में, भाषाई मानवविज्ञानी ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग तकनीक के उपयोग के साथ फील्डवर्क के माध्यम से दीर्घकालिक प्रतिभागी अवलोकन की नृवंशविज्ञान तकनीकों को जोड़ते हैं। इस पद्धति का उपयोग करते हुए, भाषाई मानवविज्ञानी यह जांचने में सक्षम हैं कि भाषा और मानव संचार की अन्य प्रणालियां संस्कृति से कैसे संबंधित हैं। भाषाई मानवविज्ञान यह भी विश्लेषण करता है कि भाषा और अन्य संचार प्रणाली कैसे शक्ति संबंधों, विचारधारा, वर्ग, लिंग और जातीय पहचान को दर्शाती हैं। संक्षेप में, भाषाई मानवविज्ञान को एक सांस्कृतिक संसाधन के रूप में भाषा के अध्ययन और एक सांस्कृतिक अभ्यास के रूप में माना जाता है।

दूसरी ओर, भाषाविज्ञान भाषा की उत्पत्ति, विकास और वर्गीकरण का अध्ययन करता है। भाषाविद अक्सर लिखित भाषाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं और विभिन्न भाषाओं का वर्णन करने और उन्हें अलग-अलग भाषा परिवारों और उप-परिवारों में समूहीकृत करने में रुचि रखते हैं।विभिन्न भाषाओं में समानता और अंतर को समझें।

भाषा और संस्कृति

भाषा की संरचना और सामग्री काफी हद तक संस्कृति से प्रभावित होती है। हम कह सकते हैं कि भाषाई विविधता सांस्कृतिक विविधता का परिणाम है। एक प्रसिद्ध अमेरिकी मानवविज्ञानी, ओवरटन ब्रेंट बर्लिन के अनुसार, शब्दों की संख्या में वृद्धि सांस्कृतिक जटिलता को इंगित करती है। भाषा सांस्कृतिक स्थितियों को दर्शाती है। एक बच्चे की समाजीकरण प्रक्रिया भी भाषा से प्रभावित होती है। लोगों की स्थिति, उनके रहने की स्थिति, उनकी भाषा के माध्यम से पर्यावरण और जीवन निर्वाह के तरीके को समझा जा सकता है। भाषा और संस्कृति के बीच संबंधों का अध्ययन, और वे एक दूसरे को कैसे परस्पर प्रभावित करते हैं, उप-अनुशासन नृजातीय-भाषाविज्ञान के तहत जांच की जाती है। यह जांच करता है कि एक भाषा पारंपरिक प्राकृतिक वातावरण को कैसे दर्शाती है। नृवंशविज्ञानियों ने अध्ययन के तहत समूह के साथ अपनी बातचीत में मौजूदा सामाजिक सांस्कृतिक स्थिति को समझना सीख लिया है।

संस्कृति और भाषा के बीच के संबंध को निम्नलिखित क्षेत्रों की परीक्षा के माध्यम से अच्छी तरह से समझा जा सकता है:

1.      भाषा मानव विचार को प्रभावित करती है: यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि भाषा कुछ हद तक लोगों के दुनिया के बारे में देखने और सोचने के तरीके को आकार देती है। संस्कृति का सीधा संबंध मानव विचार से है। कुछ भाषाविद् तो यह भी कहते हैं कि भाषा वास्तव में विचार को निर्धारित करती है।यह व्यवहार और संस्कृति को भी आकार देता है। उदाहरण के लिए यदि किसी भाषा में अंग्रेजी में प्रयुक्त 'स्नो' को दर्शाने के लिए कोई शब्द नहीं है, तो उस संस्कृति में पला-बढ़ा व्यक्ति बर्फ के बारे में नहीं सोच सकता क्योंकि यह अंग्रेजी में निहित है। जैसे-जैसे विचार पैटर्न बदलता है, उस समाज की सांस्कृतिक स्थिति भी उसी के अनुसार बदलती है।

2.      भाषा सामाजिक भूमिकाओं और स्थितियों को इंगित करती है: आपकी स्थानीय भाषा में, किसी व्यक्ति की 'मृत्यु' को दर्शाने के लिए अलग-अलग शब्द हो सकते हैं। इन शब्दों का प्रयोग जाति, लिंग, आयु और सामाजिक स्थिति के अनुसार भिन्न हो सकता है।

3.      भाषा सांस्कृतिक प्रतीकों को साझा करने में मदद करती है: संस्कृति की विशेषताओं में से एक साझा अभ्यास की इसकी प्रकृति है। समाज में इस साझेदारी को सुनिश्चित करने के लिए हमें भाषा के माध्यम की आवश्यकता है। हम भाषा के माध्यम से अपनी संस्कृति की मान्यताओं और प्रथाओं को सीखते हैं।

4.      भाषा संस्कृति को सीखने का माध्यम है: भाषा हमें अपनी संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को सीखने में मदद करती है। हम अपनी संस्कृति के सामान्य नियमों और मानदंडों को साझा करके व्यवहार करना और सामाजिक संपर्क में शामिल होना सीखते हैं। भाषा लोगों को एक साथ जोड़ती है और किसी दिए गए समाज में सामान्य ज्ञान तैयार करने में मदद करता है। हमें अन्य संस्कृतियों के लक्षणों को आत्मसात करने के लिए माध्यम, भाषा की आवश्यकता होती है।

5.      भाषा संस्कृति का वाहन है: जैसा कि पहले बताया गया है, भाषा, संक्षेप में, संस्कृति के वाहक के कार्य को पूरा करती है। भाषा के माध्यम से माता-पिता और बुजुर्ग अपने बच्चों और अगली पीढ़ी के व्यक्तियों के लिए जीवन का रास्ता बताते हैं । यह संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी और एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तक ले जाती है।

 

Monday, September 19, 2016

Chronology: Cenozoic era (नूतन खंड); Pleistocene Period (प्रतिनूतन काल) जलवायु संबंधी अस्थिरता का युग:-



Chronology: Cenozoic era (नूतन खंड); Pleistocene Period (प्रतिनूतन काल)
जलवायु संबंधी अस्थिरता का युग:-
     प्रतिनूतन काल पृथ्‍वी के विकास के इतिहास में मानव के उद्भव एवं विकास के लिए ही महत्‍वपूर्ण नहीं है, अपितु जलवायु संबंधी परिवर्तनों के लिए भी विशेष रूप से उल्‍लेखनीय है। जलवायु के दृष्टिकोण से यह एक अभूतपूर्व अस्थिरता का युग था। पृथ्‍वी के जीवन काल में संसार की जलवायु सभी स्‍थानों में अधिकांशत: अपेक्षाकृत उष्‍म थी। यद्यपि इस विस्‍तृत उष्‍माकाल के बीच में कई हिमयुग भी हुए प्रतिनूतन काल को महान हिमयुग भी कहा गया है।
     प्रतिनूतन का प्रारंभ जलवायु के दृष्टिकोण से अतिनूतनकाल के बाद प्रथम हिमायन (Glaciation) से माना जाता है। हिमायनों के संबंध में 19वीं शताब्‍दी के पूर्व तक कुछ भी नहीं ज्ञात था, सर्वप्रथम एक स्विस अभियंता जे.वेबेज का ध्‍यान इस तरफ आकर्षित हुआ था। किन्‍तु हिमायन के सिद्धांत को वास्‍तविक रूप से संसार के सामने प्रस्‍तुत करने में सबसे अधिक योगदान शार्पेष्टियर (Charpentier) तथा आगासिज (Agasiz) का है। इनका कार्य स्विजरलैण्‍ड के आल्‍प (Alps) पर्वतों के निकट क्षेत्रों के हिमायनों पर आधारित था।
          ए. पैक (A-Penk) तथा ई. ब्रुकनर (E. Bruckner) सन् 1909 में किए गए कार्य के आधार पर चार हिमकालों तथा तीन अंतरहिमकालों के होने के स्‍तरीय (Stratigraphics) प्रमाण दिए थे। प्रत्‍येक हिमकाल का नामकरण उन्‍होंने Alps पर्वत के उत्तर में डेन्‍युब नदी की घाटी की ओर बहने वाली 4 नदियों के नाम पर किया जो क्रमश:-
वुर्म हिमकाल
वुर्म-रिज अंतरहिमकाल
रिहिमकाल
मिन्डेल-रिस अंतरहिमकाल
मिन्डेल हिमकाल
गुँज-मिन्डेल अंतरहिमकाल
गुँज हिमकाल



इनका यह सिद्धांत केवल Europe के संदर्भ में नहीं अपितु विश्‍व में प्राय: जहाँ कहीं हिमायन हुए है उन सभी स्‍थानों के लिए सत्‍य माना जाता है।

     भारत में हिमायन का अध्‍ययन डी.टेरा तथा टी.टी. पेटरसन (De Terra and T.T. Paterson) विद्वानों ने किया है, उन्‍हें यहाँ पर भी 4 हिमकालों तथा 3 अंतर हिमकालों के प्रमाण मिले हैं, जिन्‍हे प्रथम द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ हिमकाल कहते है। इसी प्रकार अंतरहिमकालों को भी प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय अंतरहिमकाल कहते हैं। जिस समय संसार के विभिनन क्षेत्रों में हिमकाल अथवा अंतरहिमकाल हो रहे थे। उसी समय अन्‍य क्षेत्रों में Pluvial (वर्षा काल) तथा अंतरवर्षा काल हो रहे थे। इस प्रकार की जलवायु उष्‍ण कटिबंधों में थी। अफ्रीका में चार वर्षा काल निम्‍नलिखित है:-

गेम्बलियन(Gamblian) वर्षाकाल
                    कंजेरन- गेम्बलियन अंतरवर्षाकाल
कंजेरन (Kanjeran) वर्षाकाल
                    कमाशियन- कंजेरन अंतरवर्षाकाल
कमाशियन(Kamasian) वर्षाकाल
                    कंगेरन- कमाशियन अंतरवर्षाकाल
कंगेरन (Kageran) वर्षाकाल
     तथा इनके मध्‍यवर्ती 3 अंतरवर्षा के प्रमाण मिलते है। दक्षिण भारत में इसी प्रकार के वर्षाकालों तथा अंतरवर्षा कालों के प्रमाण प्राप्‍त हुए है। वर्षाकाल में अधिक वर्षा के प्रमाण मिलते है, तथा बड़ी नदियों और झीलों का निर्माण होता है। अंतरवर्षाकाल अपेक्षाकृत शुष्‍ककाल था, जबकि धरती के तापमान में वृद्धि और आद्रता में कमी हो जाती थी। फलस्‍वरुप बड़ी नदियाँ तथा बड़ी झीले छोटी होने लगती थी और साधारण नदी नाले सूखने लगते थे।
     विद्वान इस संबंध में एकमत नहीं है कि हिमकाल तथा वर्षाकाल और अंतरवर्षा काल का पारस्‍पारिक कोई संबंध था इस विषय में प्रमुख प्रश्‍न है कि क्‍यों ये दोनों संसार के विभिन्‍न प्रदेशों में एक ही समय हुए थे?
     प्रो एल. एस. बी. लीके हिमकालों और अंतरहिम कालों और वर्षाकालों तथा अंतरवर्षा कालों को समसामायिक मानते हैं। उनके अनुसार ''पृथ्‍वी के धरातल का औसत तापमान में कमी के साथ जल अथवा बर्फ के रूप में आद्रता में वृद्धि के कारण भौगोलिक कटिबंधों में विस्‍तृत बर्फ की चादरों तथा बर्फीले मैदानों का निर्माण होगा। तथा संसार के अन्‍य भागों में उसी जलवायु के परिवर्तन स्‍वरुप नदियों तथा झीलों का निर्माण होगा।
     इसी प्रकार जब पृथ्‍वी के औसत तापमान में अधिकता तथा आद्रता में कमी आती है तब उसका फल संसार के विभिन्‍न क्षेत्रों में भिन्‍न-भिन्‍न होगा। जहाँ पर बर्फ की चादरे और बर्फीले मैदान थे वहाँ पर तापमान बढ़ने के कारण बर्फ पिघलने लगेगी। फलत: नदियाँ और नाले पिघले बर्फ के पानी से भरने लगेंगे। जिन प्रदेशों में बर्फ की चादरें नहीं थी, वहाँ पर धीरे-धीरे नदियों और झीले सूखने लगेगी। और जलवायु में शुष्‍कता बढ़ने लगेगी। लीके महोदय के अनुसार यदि हिमकाल एवं अंतरहिमकाल और वर्षाकाल एवं अंतर वर्षाकाल एक ही कारण के फलस्‍वरुप हुए, तो विभिन्‍न क्षेत्रों में उनका समसामायिक होना माना जा सकता है।
सूर्य विकिरण Solar  radiation सिद्धांत:-
     निम्‍नलिखित दो तत्‍वों पर आधारित है:-
1. पृथ्‍वी में जलवायु की आद्रता एक समान रहती है। आद्रता केवल अपनी प्रकृति बदलती है, जो वाष्‍प, हिम या जल के रूप में हमेशा एक मात्रा में रहती है।
2. सूर्य विकिरण तथा आद्रता के अंतर क्रिया के कारण ही जलवायु में बदलाव होता है।

जब पृथ्‍वी का तापमान बढ़ता है तब वह ठण्‍डी जलवायु काल का कारक बनता है अगर पृथ्‍वी का तापमान घटता है, तब वह गर्म जलवायु का कारक बनता है। जब पृथ्‍वी का तापमान बढ़ता है, तब पृथ्‍वी पर मौजूद बर्फ तथा जल बाष्‍प में परिवर्तित होते हैं जिसके कारण बादल का निर्माण होता है, जो पृथ्‍वी और सूर्य के बीच में मोटे परदे का रूप ले लेता है। इस कारण से सूर्य विकिरण पृथ्‍वी के अंदर नहीं आ पाता पृथ्‍वी के अंदर  मौजूद सूर्य विकिरण के बराबर उपयोग होने के कारण पृथ्‍वी का तापमान कम हो जाता है। इसके फलस्‍वरुप कुछ क्षेत्रों 100 डिग्री F  के नीचे तापमान  में बर्फबारी होती है तथा कुछ क्षेत्रों में 100 डिग्री F  के ऊपर तापमान में वर्षा होती है। इस बर्फबारी और वर्षा के कारण बादल घट जाते है तथा सूर्य विकिरण फिर से आने लगता है, जिनके फलस्‍वरुप पृथ्‍वी का तापमान बढ़ने लगता है, जल और बर्फ, वाष्‍प का रुप लेकर बादल का निर्माण करते हैं। इस प्रकार प्रक्रिया चलने के कारण ही हिमकाल और अंतर हिमकाल और वर्षा काल और अंतर वर्षा काल हुए थे।

Monday, August 29, 2016

मानव वृद्धि और विकास


मानव वृद्धि और विकास
     मानव वृद्धि का अर्थ शरीर के विभिन्‍न भागो एवं अंगो की संख्‍या, आकार, आयतन तथा वजन में बढ़ोतरी है। जैविक मानवशास्‍त्री मानव में आयी विभिन्‍नताओं, प्रकृति में बदलाव तथा विभेदीकरण पर महत्‍व देते हैं। यह सारी प्रक्रियाएँ काफी हद तक वृद्धि में  निहित है। इसका प्रारम्‍भ प्रसव पूर्व से प्रसव तक और बाल अवस्‍था से मृत्‍यु तक चलता रहता है। अत: वृद्धि  कोशिकाओं के जीवन संबंधी  प्रक्रियाओं से जुड़ी है।
     वृद्धि का आरम्‍भ एक डिंब (zygote) से होता है जिसके अंतर्गत तीन प्रकृयाएं होती है-
1. हाइपरप्‍लेसिया- इसमें समसूत्री विभाजन या Mitotic Division के परिणाम स्‍वरूप कोशिकाओं की संख्‍या में वृद्धि होती है।
2. हाइपरट्रॉफी- कोशिकाओं के आकार में वृद्धि होती है।
3. एक्रियन- जिसमें अंतराकोशिका पदार्थ में वृद्धि होती है जिससे कोशिका का आयतन बढता है।
     इस प्रकार वृद्धि हाइपरप्‍लेसिया, हाइपरट्राफी तथा एक्रियन का बाहरी रूप है। यह सभी प्रक्रिया जीन में कोशिकाओं के अंदर होती हैं। जिसके कारण शरीर का आकार-प्रकार वजन इत्‍यादि बढ़ता है। इस प्रकार वृद्धि एक मात्रात्‍मक प्रक्रिया है।

मानव विकास-
     विकास जीवित तत्‍वों की वह विशेषता है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत कोशिकाओं का विश‍षीकरण विभेदीकरण तथा परिपक्‍वता आती है। विकास किसी एक दिशा में न होकर कई दिशाओं में एक साथ चलता है। यह गुणात्‍मक प्रक्रिया है । विकास के अंतर्गत 3 परिक्रियाएँ होती हैं।
1. विभेदीकरण (Differentiation)- इनमें कोशिकाओं के स्‍थान के अनुसार उनके कार्य का निर्धारण होता है।
2. विशेषीकरण या विशिष्‍टकरण (Optimal Maturity)- - इसके अतंर्गत कोशिकाओं का विशेषीकृत कोशिकाओं में परिवर्तन तथा विभिन्‍न शारीरिक अंगों में विशेषी करण आना।
3. परिपक्‍वता (Specialization)- - इसका अर्थ होता है बिना आकार अथवा संख्‍या में परिवर्तन हुई शारीरिक अंगो का श्रेष्‍ठतम क्रिया करना
     इस प्रकार विकास एक गुणात्‍मक प्रक्रिया है। यदि वृद्धि शरीर के आकार-प्रकार वजन आदि में परिवर्तन से संबंधित है तो विकास मनोवैज्ञानिक, विचार, प्रज्ञा से संबंधित है।
1. टैनर महोदय के अनुसार ''वृद्धि एक गति के अनुरूप है तथा शरीर के आकार और प्रारूप में परिवर्तन है वही विकास अतिविशिष्‍ट बदलाव को दर्शाता है।''
2. ब्रिटिश चिकित्‍सा शब्‍दकोश के अनुसार ''विकास एक क्रम बद्ध बदलाव है, जिसमें भ्रूण,एम्ब्रियों से एक परिपक्‍व शरीर में परिवर्तित होता है, इसमें शरीर की विभिन्‍न भागों का प्रारम्भिक अवस्‍था से परिपक्‍वता की अवस्‍था तक पहुचना आवश्‍यक होता है।''
3. वीस (Weiss) महोदय के अनुसार ''वृद्धि में कोशिकाओं की संख्‍या, आकार, भार कोशिकाओं का विभाजन प्रोटीन संश्‍लेषण इत्‍यादि अंतरनिहित हैं।

the virtual sapien

My photo
Wardha, Maharashtra, India
Assistant Professor of Anthropology in Mahatma Gandhi Antarrastriya Hindi Vishwavidyalay (Central University)